Wednesday, January 2, 2013

ये तीन हथियार कर सकते हैं बलात्कारी पर वार

पश्चिमी देशों में अपनी सुरक्षा के लिए महिलाएं कई तरह के तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि इन तरीकों को कुछ देशों में हथियार की श्रेणी में रखा गया है और इनका इस्तेमाल गैर कानूनी है जबकि कुछ देशों में इनके इस्तेमाल की छूट है।

एक नजर कुछ ऐसे ही तरीक़ों और हथियारों पर-
टेजर गन
टेजर गन से गोलियां नहीं चलतीं बल्कि ये गन बिजली की बौछार करती है। बैटरी से चलने वाली इस गन से गोलियों की तरह तार निकलते हैं जो हमलावर के शरीर में करंट दौड़ा देते हैं। इस बंदूक की मारक क्षमता 35 मीटर तक है जबकि नागरिक इस्तेमाल के लिए बनाई जाने वाली बंदूकों की मारक क्षमता को 15 मीटर तक सीमित किया गया है।

इस गन का इस्तेमाल अधिकतर पुलिस वाले करते हैं और अधिकतर देशों में इसे हथियार के तौर पर मान्यता दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया के कुछ राज्यों में इसे रखना गैरकानूनी नहीं है लेकिन इसके लिए अनुमति लेनी होती है। आइसलैंड में टेजर गन के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है। अमेरिका में टेजर गन को हथियार नहीं माना जाता और कोई भी इंसान बिना किसी रोक-टोक के इसे लेकर घूम सकता है। वैसे भारत में ये उपलब्ध नहीं है।

पेपर स्प्रेपेपर स्प्रे यानी मिर्ची स्प्रे का आप हमलावर पर छिड़काव कर सकते हैं। जिसके बाद हमलावर अपनी आंखें नहीं खोल पाता है, उसके चेहरे पर तेज़ जलन होती है और सांस लेने में तकलीफ होती है। इस स्प्रे का असर 30-40 मिनट तक रहता है। ये विभिन्न तरीके की पैकिंग और रूप में आता है जिसे आसानी से जेब में रखा जा सकता है।

कुछ खास तरह के पेपर स्प्रे में अल्ट्रा वॉयलेट रंग भी मिलाए जाते हैं जिससे हमलावर अगर भाग पाने में कामयाब हो तो उसे पकड़ने में आसानी हो सके। पेपर स्प्रे के कैन की मार 6-7 फुट तक हो सकती है और ये महिलाओं की सुरक्षा का अहम हथियार माना जाता है।

भारत जैसे देश में इस स्प्रे को सरकारी कंपनियां ही बेच सकती है और आम नागरिक इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। हांगकांग में पेपर स्प्रे को हथियार के तौर पर परिभाषित किया गया है और इसका इस्तेमाल मना है। ईरान में सिर्फ पुलिस ही इस हथियार का इस्तेमाल कर सकती है। यूरोप में कई देशों में इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है जबकि कुछ देशों में इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है।

पावर अलार्म
इस तरह के अलार्म आप अपने बैग में रखकर चल सकते हैं। इनसे तेज ध्वनि निकलती है जिसे सहन करना आसान नहीं होता। इस तरह के अलार्म को 400 मीटर तक सुना जा सकता है। इस तरह के अलार्म की क्षमता अलग- अलग हो सकती है और दूर तक खतरे का संकेत पहुंचाने का ये अच्छा साधन है।

माना जाता है किसी दुविधा में शोर मचाना सबसे आसान और असरदार तरीका है और निजी पावर अलार्म ऐसी ही सोच की उपज है। इन्हें आसानी से अपने साथ रखा जा सकता है, इनके इस्तेमाल पर कानूनी रोक नहीं होती और इन्हें रखना सुरक्षित भी है। इस तरह के अलार्म की आवाज कितनी तेज हो, ये निर्माता पर निर्भर करता है। इसमें कान के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज से लेकर दिल दहलाता अहसास करवाने वाली शामिल हैं।


 

Monday, February 28, 2011

राम हनुमान वार्ता

 भगवान महाप्रभु ने “राम-सेतु” का अवलोकन किया और भक्त हनुमान से कहा – हे पवनपुत्र, तुमने और तुम्हारी वानर सेना ने किस खूबसूरती और मजबूती से हजारों वर्ष पूर्व इस सेतु का निर्माण किया है, यह देखकर मैं बहुत खुश हूँ। मुझे तुम्हें शाबाशी देना चाहिये कि तमाम पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय दबावों के बावजूद यह पुल सुरक्षित रहा और इसने सुनामी को भी रोके रखा। हनुमान, वाकई यह तुम्हारा एक स्तुत्य कार्य है, खासकर तब जबकि हैदराबाद में “गैमन” जैसी विशालकाय कम्पनी का बनाया हुआ पुल उद्‌घाटन से पहले ही गिर गया है।

हनुमान ने कहा – प्रभु यह सब आपकी कृपा के कारण सम्भव हुआ था, हम तुच्छ वानर तो सिर्फ़ आपका नाम लिखे हुए पत्थर समुद्र में डालते गये, ना ही हमने टाटा का स्टील लिया था और न ही अम्बुजा और एसीसी का सीमेंट वापरा था, लेकिन प्रभु वह तो बहुत पुरानी बात है, इस वक्त यह मुद्दा क्यों?

बात ही कुछ ऐसी है भक्त, वहाँ नीचे पृथ्वी पर कुछ लोग तुम्हारा बनाया हुआ वह पुल तोड़ना चाहते हैं, ताकि उसके बीच में से एक नहर निकाली जा सके। उस ठेके में अरबों रुपये का धन लगा है, करोड़ों का फ़ायदा होने वाला है, यहाँ तक कि उस पुल को तोड़ने में ही “कुछ लोग” करोड़ों कमा जायेंगे, नहर तो बाद में बनेगी....

हनुमान ने भक्ति से सिर नवाकर पूछा – तो प्रभु क्यों ना हम पुनः धरा पर जायें और उन्हें समझाइश देने की कोशिश करें...
राम बोले – नहीं वत्स, अब समय बहुत बदल चुका है। यदि हम धरती पर चले भी गये तो सबसे पहले वे लोग तुमसे तुम्हारा आयु का प्रमाण माँगेंगे, या फ़िर स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र, जबकि हमारे पास तो जन्म प्रमाणपत्र भी नहीं है। हे अंजनीपुत्र, हम तो सदियों से पैदल ही चलते रहे हैं, कभी-कभार बैलगाड़ी में भी सफ़र किया है, सो हमारे पास ड्रायविंग लायसेंस भी नहीं है। जहाँ तक निवास का प्रमाणपत्र देने की बात है तो पहले हमने सोचा था कि “अयोध्या” का निवास प्रमाणपत्र दे देंगे, लेकिन वह पवित्र भूमि तो पिछले पचास साल से न्यायालय में अटकी पड़ी है। यदि मैं “अरुण गोविल” की तरह पारम्परिक धनुष-बाण लिये राम बन कर जाऊँ तो वे मुझे पहचानना तो दूर, कहीं मुझे किसी आदिवासी इलाके का समझकर नृत्य ना करवाने लगें या “भारत-भवन” भेज दें। ये भी हो सकता है कि अर्जुन सिंह मुझे आईआईटी में एक सीट दे दें। भगवान स्वयं थ्री-पीस सूट में जनता के पास जायें तो जनता में भारी भ्रम पैदा हो जायेगा....

हनुमान ने कहा- प्रभुवर मैं आपकी तरफ़ से जाता हूँ और लोगों को बताता हूँ कि यह पुल मैंने बनाया था।

ओह मेरे प्रिय हनुमान, राम बोले- इसका कोई फ़ायदा नहीं है, वे लोग तुमसे इस “प्रोजेक्ट” का “ले-आऊट प्लान”, प्रोजेक्ट रिपोर्ट, फ़ायनेन्शियल रिपोर्ट माँगेंगे। वे तुमसे यह भी पूछेंगे कि इतने बड़े प्रोजेक्ट के लिये पैसा कहाँ से आया था और समूचा रामसेतु कुल कितने लाख डॉलर में बना था, और यदि तुमने यह सब बता भी दिया तो वे इसका पूर्णता प्रमाणपत्र (Completion Certificate) माँग लेंगे, तब तुम क्या करोगे पवनपुत्र। फ़िलहाल तो धरती पर जब तक डॉक्टर लिखकर ना दे दे व्यक्ति बीमार नहीं माना जाता, यहाँ तक कि पेंशनर को प्रत्येक महीने बैंक के अफ़सर के सामने गिड़गिड़ाते हुये अपने जीवित होने का प्रमाण देना पड़ता है। तुम्हारी राह आसान नहीं है, हनुमान!

हनुमान बोले- हे राम, मैं इन इतिहासकारों को समझ नहीं पाता। सदियों-वर्षों तक आपने कई महान भक्तों जैसे सूरदास, तुलसीदास, सन्त त्यागराज, जयदेव, भद्राचला रामदास और तुकाराम को दर्शन दिये हैं, लेकिन फ़िर भी वे आप पर अविश्वास दर्शा रहे हैं? आपके होने ना होने पर सवाल उठा रहे हैं? अब तो एक ही उपाय है प्रभु... कि धरती पर पुनः एक रामायण घटित की जाये और उसका एक पूरा “डॉक्यूमेंटेशन” तैयार किया जाये।

प्रभु मुस्कराये (ठीक वैसे ही जैसे रामानन्द सागर के रामायण में करते थे), बोले- हे पवनपुत्र, अब यह इतना आसान नहीं रहा, अब तो रावण भी करुणानिधि के सामने आने में शर्मा जायेगा। मैंने उसके मामा यानी “मारीच” से भी बात की थी लेकिन अब वह भी “सुनहरी मृग” बनने की “रिस्क” लेने को तैयार नहीं है, जब तक कि सलमान जमानत पर बाहर छुट्टा घूम रहा हो। यहाँ तक कि शूर्पणखा भी इतनी “ब्यूटी कांशस” हो गई है कि वह नाक कटवाने को राजी नहीं है, बालि और सुग्रीव भी एक बड़ी कम्पनी में पार्टनर हो गये हैं सो कम ही झगड़ते हैं, फ़िर कहीं मैंने शबरी से बेर खा लिये तो हो सकता है मायावती वोट बैंक खिसकता देखकर नाराज हो जायें... तात्पर्य यह कि, हे गदाधारी, वहाँ समस्याएं ही समस्याएं हैं... बेहतर है कि अगले “युग” का इन्तजार किया जाये...
(एक इ-मेल पर आधारित) 
http://blog.sureshchiplunkar.com/2007/10/ram-hanuman-dialogue-on-ramsetu.html

Wednesday, January 26, 2011

२६ जनवरी

२६ जनवरी यानी की गणतंत्र दिवस ! क्या वाकई हम जिसे गणतंत्र दिवस कहते है यह गणतंत्र दिवस है ?

आइये इसके बारे में कुछ जानते है !

सन्न १९३० में आज के ही दिन भारत के स्वतंत्रा सेनानी ने आज़ादी के दिवस के रूप में मनाया था !
सन्न १९४७ में भारत आज़ाद होने के बाद भारत में १९५० में २६ जनवरी को सविधान पारित हुआ था ! 
लेकिन जिस संविधान को हम अपने देश का संविधान कहते है क्या यह अपना है ?
जिस संविधान को हम अपना कहते है हक़ीकत में १९३५ में अंग्रेजो ने बनाया था ! और इसी के सहारे हमारे देश को १००० वर्ष तक गुलाम बनाने की तयारी की थी ! मगर यैसा  हुआ नहीं ! जब भारत आज़ाद हुआ तो बहुत से नेता ने कहा की भारत के लिए ने संविधान नए बनने चाहिए ! मगर कुछ लालची नेता को सत्ता पे बैठने की जल्दी थी ! इसलिए उन नेताओ ने कहा अब नई संविधान बनाने के लिए वक़्त नहीं है देश को जल्द से जल्द तरक्की करनी है और आनन फानन में अंग्रेजो के संविधान को ही भारत का संविधान बना दिया ! अंग्रेजो ने ३६००० क़ानून बनाये थे वही क़ानून आज तक हमरे देश में चल रहे है ! आप अगर १९३५ की संविधान की पुस्तक ले लीजिये और अभी के संविधान की पुस्तक ले लीजिये दोनों में कोई भी अंतर नहीं है ! कुछ अंतर है वो इसलिए क्यों की संविधान बनाते वक़्त कुछ संविधान कनाडा की किताब से तो कुछ दूसरी देशों की किताबो से लेकर एक किताब बना डाली !

 इस संविधान को अंग्रेजो यैसा बनाया है जिसके कारण हम इस देश के नागरिक है या नहीं ये भी अंग्रेजो ने तय किये है ! 

आप सोचिये कितनी घटिया क़ानून बनाई है अंग्रेजो ने :
अगर कोई इंसान किसी गाय को आप डंडे से मार दे तो उसे  जेल हो जायेगी मगर उसी गाय को कोई क़त्ल खाने में ले जा कर उसे काट दे तो कोई क़ानून नहीं उस के लिए !

एक अच्छा सा उदहारण देता हु में आप को कैसी क़ानून वेवस्था  है यहा   पर :
एक बार राजा विक्रमादित्य के दरबार में दो औरते एक नन्हे से बच्चे को ले कर आई और दोनों ने ये कहा की ये बच्चा  मेरा है ! राजा ने तुरंत कुछ सोचा और एक तलवार निकाली और एक औरत को तलवार दे कर कहा "इस बच्चे को काट कर दो टुकड़े कर  दो और एक एक टुकड़े दोनों ले लो ! उस औरत ने तलवार ले कर जैसे ही उस बच्चे की तरफ बढ़ी दूसरी औरत ने तुरंत चिल्ला कर बोली " बच्चे को मत काटो भले ही तुम इसे ले जाओ " राजा ने तुरंत समझ लिया की इस बच्चे की असल में माँ कौन है ! राजा तुरंत असली माँ को बच्चा दे कर झूटी माँ को करागार में ड़ाल दिया !
अगर ऐसे माजरे को ले कर कोई आज की  अदालत में  जाये तो २० वर्ष से भी अधिक लगेंगे फैसले आने में !
आप सोच लीजिये कैसी क़ानून है हमारे यहा और कैसी संविधान है ? 

इस संविधान में कुछ भी अपना नहीं हैं ! और एसी संविधान को कुछ लालची नेताओ के कारण हमे अपना कहना पड़ता है जो हमारे लिए शर्म की बात है ! 
 

ज़रा आप सोचिये क्या ऐसी संविधान को आप अपना कहना पसंद करेंगे ? 
क्या इस संविधान के लिए २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस मनना चाहिए ?
इन नेताओ के कारण हमे पूरी आज़ादी  नहीं मिली बस आज़ादी के नाम पर हमे बहला कर खुद देश को लुट रहे है !

                                                                  जय हिन्द